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रिसर्चर्स ने प्रोटीन के नए उपयोग में पायी सफलता, अब हो सकेगा कई गंभीर रोगों का इलाज

रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान अर्था...

5 years ago
रिसर्चर्स ने प्रोटीन के नए उपयोग में पायी सफलता, अब हो सकेगा कई गंभीर रोगों का इलाज

रुड़की स्थित भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान अर्थात आई आई टी के कुछ रिसर्चर्स ने प्रोटीन के अंदर एक नए तत्व इम्यूनोमॉड्यूलेटरी के इस्तेमाल की खोज कर के एक बड़ी सफलता प्राप्त कर ली है। बताया जा रहा है की इसकी मदद से सेप्सिस तथा सूजन आदि की बीमारियों के उपचार में मदद मिल जायेगी, जो प्रतिरक्षा कोशिकाओं के सही ढंग से काम नहीं कर पाने की वजह से पैदा होती हैं।

इंस्टिट्यूट के बायोटेक्नोलॉजी डिपार्टमेंट की सहायक प्रोफेसर एवं रिसर्च हेड डॉ. प्रणीता पी.सारंगी ने ये बताया है कि प्रतिरक्षा कोशिकाएं जब सही ढंग से काम नहीं कर पाती हैं तो इससे सेप्सिस (ब्लड इंफेक्शन) की घातक परेशानी तथा सूजन होने वाली बीमारियां भी हो जाती हैं। सेप्सिस में बेकाबू इंफेक्शन से न्यूट्रोफिल्स तथा मैक्रोफेज जैसे आवश्यक प्रतिरक्षा कोशिकाओं के एबनॉर्मल एक्टिवेशन तथा लोकलाइजेशन की परेशानी हो जाती है।

प्रतिरक्षा प्रणाली जिसे इम्यून सिस्टम कहते है के सही ढंग से काम नहीं करने की अवस्था में ऐसी कोशिकाएं फेफड़ों, किडनी तथा लीवर जैसे अंगों में जमा होने लग जाते हैं। ऐसा होने पर धीरे धीरे अलग अलग अंग काम करना बंद करने लग जाते हैं और एक समय में नौबत मौत तक की आ जाती है। कुछ मामलों में इंफेक्शन के ऊपर एंटीबायोटिक्स के उपयोग से स्थिति और ज्यादा खतरनाक हो जाती है।

रिसर्च हेड डॉ. प्रणीता के मुताबिक़ सेप्सिस के पशु मॉडल में पूरी लंबाई वाला एफबीएलएन-7 नाम का प्रोटीन तथा इसके सी-टर्मिनल फ्रेगमेंट सूजन भरे बॉडी के टिश्यू और अलग अलग अंगों (पेरीटोनियल कैविटी तथा फेफड़ों) में मैक्रोफेज तथा न्यूट्रोफिल को प्रवेश करने देने से रोक देते हैं। इससे यह बात साफ है कि एफबीएलएन-7 तथा इसके बायोएक्टिव फ्रेगमेंट या फिर छोटे छोटे पेप्टाइड्स में इम्यूनो पैथोलॉजिकल सम्बंधित परेशानियों के इलाज की संभावना है।

इसके लिए प्रतिरक्षा कोशिकाओं के काम पर प्रतिरोधी नियंत्रण महत्वपूर्ण हो जाता है।रिसर्च हेड डॉ. प्रणीता ने इस पर कहा कि इस नए पहलू पर अभी भी रिसर्च चल रही है। इस रिसर्च टीम में डॉ. किरण अम्बातिपुदी, पापिया चक्रवर्ती तथा शीब प्रसाद दास भी शामिल हैं। इन सब के अलावा अमेरिका के National Institutes of Health के डॉ. योशीहीको यमादा की रिसर्च टीम भी इस रिसर्च से जुड़ी हुई है। यह रिसर्च हाल ही में फेडरेशन ऑफ अमेरिकन सोसायटीज फॉर एक्सपेरिमेंटल बायोलॉजी के जर्नल में भी प्रकाशित की जा चुकी है।

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