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टोपी छोड़ बने जनेऊधारी, क्या मंदिर की दौड़ दिलाएगा राहुल बाबा को गुजरात की पारी?

आधुनिक भारत के महान चिंतक, सामाज सुधारक और देशभक

6 years ago
टोपी छोड़ बने जनेऊधारी, क्या मंदिर की दौड़ दिलाएगा राहुल बाबा को गुजरात की पारी?

आधुनिक भारत के महान चिंतक, सामाज सुधारक और देशभक्त महर्षि दयानन्द सरस्वती जी ने 19वी सदी के गुलाम भारतवर्ष में कहा था “वेदों की ओर लौटो” और पुरे देश में उनके इस विचार की हवा चल पड़ी थी।

पिछले कुछ दिनों से ऐसी ही कुछ हवा हमारे देश में फिर से चलने लगी है, मंदिरों के बारे में जो लोग बात भी करना पसंद नहीं करते थे, मंदिरों पर टिप्पणी करते हुए जो लोग ये कहते थे कि “मंदिर जाने वाले लड़की छेड़ते है” वो लोग भी अब मंदिरों की महत्ता समझने लगे हैं, और अपने वक्तव्यों तथा कृत्यों से कहीं ना कहीं यही कह रहे हैं कि “मंदिरों की ओर लौटो”। चाहे वोट के लिए हीं सही, मंदिरों ने उन्हें अपने दर पे मत्था टेकने पर मजबूर कर ही दिया है। 

गुजरात में चल रहे वर्तमान विधानसभा चुनावों ने भारतीय राजनीति के सारे समीकरण बदल के रख दिए हैं, जो कांग्रेस पार्टी कल तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भारतीय जनता पार्टी को मंदिरों की राजनीती करने वाला कह के दिन रात कोसती रहती थी, सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान ये कहती थी कि भगवान श्री राम एक कल्पना या कल्पित कथा है। उसी कांग्रेस पार्टी के नए नवेले सुप्रीमो राहुल गाँधी जी पिछले 2 महीनों में करीब 23 मंदिरों में माथा टेक आये हैं और अभी मंदिरों की सूची ख़त्म नहीं हुई है मेरे दोस्त। 

जहाँ तक सवाल सत्तारूढ़ दल भाजपा का है तो भाजपा के चुनावी घोषणा पत्रों में विकास के मुद्दों के साथ ही साथ हमेशा से मंदिरों से जुड़े मुद्दे भी रहते ही हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी ने भी ये मुद्दे हमेशा उठाये हैं, ये मुद्दे उनके कोर मुद्दों में से एक रहे हैं। उन्हें इन मुद्दों को उठाने में ना कल कोई झिझक हुई थी और सम्भवतः ना ही आने वाले कल में भी होगी। 

परन्तु विरोधियों को वक़्त और स्थान के अनुसार अपने मजहबी एजेंडे बदलने पड़ते हैं। कल तक जो किसी विशेष स्थान और समय पर जालीदार टोपी पहन कर एक विशेष वर्ग से वोट मांग रहा था, आज वोही खुद को बड़े गर्व से जनेऊधारी बता कर दूसरे वर्ग के वोटों का आकांक्षी बना हाथ जोड़े खड़ा है। 

ये देखना दिलचस्प होगा कि ये दो नावों में सवारी करने वाले क्या गुजरात विधानसभा चुनावों की उफनती नदी पार कर भी पाते हैं या शुरुआती किनारे पर ही हिचकोले खा के सहम जाते हैं।

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