भारत और आसियान देशों के मजबूत होते रिश्ते

भारत में आयोजित हुई भारत और आसियान देशों के मध्य रजत जयंती के शिखर सम्मेलन पर पिछले दिनों पूरी दुनिया की नजर रही। ये सम्मेलन इसलिए भी ज्यादा चर्चित रहा क्योंकि पहली बार ऐसा हुआ कि भारत के गणतंत्र दिवस समारोह के आयोजन में सभी दस आसियान देशों के राष्ट्राध्यक्ष इस सम्मेलन में मुख्य अतिथि के तौर पर मौजूद रहे।

भारत की “पूर्व की ओर देखो” वाली रणनीति के कारण ये सारे पूर्वी एशियाई देश भारत से घनिष्टता बढ़ाने के पक्षधर नजर आये। इन सभी छोटे मगर रणनीतिक देशों को साथ लेकर भारत एशिया में चीन की बढ़ती ताक़तों का मुकाबला आसानी से कर सकता है।

भारत आसियान संबंधों की रजत जयंती पर आयोजित इस शिखर सम्मेलन में जारी हुए घोषणा पत्र में दोनों पक्षों ने सहयोग और समन्वय के एक लम्बे अध्याय का आरम्भ किया। सम्मेलन में जारी किये गए घोषणापत्र के माध्यम से भारत और आसियान देशों ने दुनिया को यह बताया कि दोनों पक्ष वैश्विक तथा क्षेत्रीय समस्याओं के हल नियमानुसार उपर्युक्त क़ानून के माध्यम से और आपसी भावनाओं के सम्मान का ख्याल रखते हुए करेंगे।

जारी घोषणापत्र के अनुसार दोनों पक्ष अलग अलग क्षेत्रों में सहयोग करने के लिए प्रतिबद्धता जताई है और इस प्रतिबद्धता के अनुरूप कार्य आगे भी अनुकूल गति से चलता रहे इसके लिए भी लगातार प्रयासरत रहने की बात की है। सम्मेलन में यह बात सबने मानी कि अगर ये सहयोग और समन्वय यूँ हीं जारी रहा और हम लोग इस पर हमेशा विचार विमर्श करते रहें तो भारत तथा आसियान देशों की ये दोस्ती दुनिया के लिए एक बेहतरीन उदाहरण बन कर सामने आ सकती है। 

भारत आसियान दोस्ती की सफलता की संभावनाएं बहुत ज्यादा है, ऐसा इसलिए कहा जा सकता है क्योंकि भारत और सभी दस आसियान देशों के बीच बहुत सारी बातें समान है। सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से भी दोनों पक्षों के बीच बहुत जुड़ाव देखने को मिलता है। ऐसा कोई मुद्दा नजर नहीं आता जिससे भविष्य में भी दोनों पक्षों के बीच किसी तरह की समस्या खड़ी हो पाए। अतः इस बेहतरीन स्थिति का हमे ज़रूर लाभ उठाना चाहिए और जो बातें इस शिखर सम्मेलन के दौरान कही गई उनका क्रियान्वयन भी जल्द किया जाना चाहिए।

भारत आसियान देशों का यह गठजोड़ कहीं न कहीं चीन को खटकेगा और इस रजत जयंती सम्मेलन में जारी घोषणापत्र में भी दोनों पक्षों ने चीन को हिदायत दे दी है। चीन को ऐसी हिदायत देने की जरूरत भी थी, क्योंकि आज के जमाने में नहीं जब कोई देश विस्तारवादी सोच रखता है तो उसे इस तरह की हिदायत देना ज़रुरी हो जाता है। बीजिंग ने इसी तरह की मानसिकता हमेशा से अपनाई हुई है। भारत और आसियान देशों को इसी तरह आगे भी यह कहते रहना चाहिए कि चीन मनमानी करता है अपनी आर्थिक और सामरिक शक्तियों का भय दिखा कर।

इस घोषणापत्र में ना सिर्फ चीन बल्कि उस जैसे दूसरे देशों को भी आगाह कर दिया गया है। यही वजह है कि घोषणापत्र में सरहद पार के आतंकवाद का जिक्र भी मुख्य रूप से किया गया है। और इससे पाकिस्तान को भी एक संदेश गया है। आसियान और भारत के क्षेत्र में पाकिस्तान के अलावा कोई दूसरा देश नहीं है जो आतंकवाद को बढ़ावा देते है। पाकिस्तान से ओसामा बिन लादेन का मिलना और वक़्त वक़्त पर ऐसी खबर मिलना की भारत का मोस्ट वांटेड अपराधी दाऊद इब्राहिम भी यही रहता है.. ये सारे तथ्य बताते हैं कि पाकिस्तान ने आतंकवाद को अपने शासन का एक आधिकारिक अंग बना रखा है।

सम्मेलन में बड़ी सफलता से सभी दस आसियान देशों के संग मिल कर अपने दोनों प्रतिद्वंद्वी देश चीन और पाकिस्तान को एक साथ कठघरे में खड़ा कर देना भारत के वर्तमान मजबूत वैश्विक कूटनीति की ही एक सफलता कहलाएगी। ये रजत जयंती शिखर सम्मेलन चूँकि इस बार भारतीय गणतंत्र दिवस समारोह के दौरान हुआ इसलिए इसे पूरी दुनिया भर में तबज्जो मिली।  

दुनिया भर की मीडिया ने भारत और आसियान देशों की मजबूत होती एकजुटता को देखा, शायद ही किसी ने इस सम्मेलन की अनदेखी की होगी। ये रजत जयंती समारोह दस दक्षिण एशियाई देश और भारत के एक साथ मिलकर विकास के पथ पर आगे बढ़ने की एक प्रभावी नीति का सूचक बना है। भारत इन सभी देशों में एक बड़े भाई की भूमिका निभा कर वैश्विक पटल पर विश्व शक्तियों को भी सफल नेतृत्व का एक अच्छा उदाहरण दे सकता है। आसियान देशों के साथ सफल रिश्तों का लाभ भारत को भी वैश्विक मंचों पर मिलेगा।

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