पाकिस्तान में घुस कर हमला करने वाले घातक कमांडोज की कैसे होती है कमांडो ट्रेनिंग

26 दिसंबर को पाकिस्तान की सीमा में घुस कर हमारी सेना के जवानों ने पाकिस्तान के तीन सैनिकों को मार गिराया, इसे दूसरा सर्जिकल स्ट्राइक भी कहा गया। इस अभियान की ख़ास बात यह है कि ये अभियान भारतीय सेना पर पाकिस्तानी हमले के महज 48 घंटे के भीतर ही कर दिया गया। ऐसे हमले के लिए विशेष रूप से प्रशिक्षित घातक कमांडोज ने इस अभियान को पाकिस्तानी सरहद के अंदर घुस कर अंजाम दिया और सुरक्षित भारतीय सरजमीं पर वापिस भी आ गए। भारत पर आई अनेक सैन्य और आतंकी आपदाओं के समय घातक कमांडो ने बढ़-चढ़ कर हिस्सा लिया है।

आइये आज जानते हैं कैसे होते हैं ये घातक कमांडो और किस तरह से होता है इनका प्रशिक्षण

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घातक पल्टन या घातक कमांडोज निश्चित किये गए अभियान विशेष को पूरा करने में सक्षम सेना की पल्टन होती है। भारतीय सेना के हर बटालियन में एक घातक पल्टन भी होती है। इस पल्टन का नाम जनरल विपिन चंद्र जोशी ने रखा था। घातक का अर्थ हत्यारा होता है। ये बटालियन शॉक ट्रूप्स की तरह काम करता है जो अतिशीघ्रता से अपने मिशन को पूरा करते हैं और दुश्मनों को संभालने का मौका भी नहीं देते।

कैसे करते हैं दुश्मन पर हमला

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घातक पल्टन के जवानों के काम करने का तरीका स्काउट स्निपर दस्ते की तरह होता है। उन्हें बटालियन या ब्रिगेड कमांडर के द्वारा कुछ विशेष जासूसी अभियान जैसे दुश्मनों पर छापामार हमला, हवाई हमला, आपूर्ति और सामरिक मुख्यालयों पर हमले किये जाने का काम सौंपा जाता है। वे तोपखाने और दुश्मन देश की सीमा रेखाओं के भीतर लक्ष्य पर हवाई हमलों के लिए सक्षम होते हैं।

पल्टन में होते हैं कितने कमांडो

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घातक कमांडोज की एक पल्टन में आमतौर पर 20 घातक कमांडोज होते हैं, इनमे एक कमांडिंग कैप्टन होता है, 2 नॉन कमीशंड अधिकारी और कुछ विशेषज्ञ जैसे निशानेबाज, स्पॉटर पेयर्स, लाइट मशीन गनर्स, मेडिक और रेडिओ ऑपरेटर होते हैं। इनके अलावा शेष हमलावर सैनिक होते हैं।

कैसी होती है कमांडो प्रशिक्षण

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बटालियन के सबसे फिट, स्वस्थ और तंदुरुस्त जवानों को घातक पल्टन के लिए चुना जाता है। ये चुने हुए जवान कर्नाटक के बेलगाऊं में कमांडो ट्रेनिंग कोर्स में प्रशिक्षण लेते हैं। 

प्राक्षिण के दौरान 20 से 60 किलोमीटर की दूरी तक के युद्ध मैदान में राइफल और 20 किलोग्राम का बैगेज पीठ पर टांग कर सैनिकों की ट्रेनिंग होती है। उनके पैरेंट यूनिट और उनकी निभाई भूमिका में सफल होने पर चयनित कमांडो फिर अगले लेवल के प्रशिक्षण से गुजरते हैं। इस प्रशिक्षण में डेमोलिशन ट्रेनिंग, क्लोज क्वार्टर बैटल, नैविगेशन, रॉक क्लाइम्बिंग और हेलिबॉर्न असाल्ट मुख्य हैं। इसके बाद भी उन्हें हाई अल्टीट्यूड वारफेयर स्कूल और जंगल वारफेयर स्कूल से प्रशिक्षण लेना होता है। इन सारे प्रशिक्षण में पास होना इस पल्टन में आने के लिए जरुरी है।

18 ग्रेनेडियर्स के ग्रेनेडियर योगेंद्र सिंह यादव (5.1-9) जी कारगिल युद्ध के दौरान टाइगर हिल पर चलाये गए घातक कमांडोज के अभियान के कमांडर थे, उन्हें बाद में सेना के सर्वोच्य पुरस्कार परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था। इनके अलावा 15 मराठा लाइट इन्फेंट्री रेजिमेंट के लेफ्टिनेंट नवदीप सिंह को अशोक चक्र दिया गया।

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