गुजरात में भगवा बरकरार, हिमाचल भी हुआ भगवामय।

गुजरात और हिमाचल प्रदेश के चुनाव परिणाम लगभग आ चुके हैं और परिणामों में वही हुआ जैसी अपेक्षा की जा रही थी। भाजपा दोनों राज्यों में पूर्ण बहुमत से सरकार बनाती हुई नज़र आ रही है। गुजरात में 22 साल से सत्ता पे काबिज़ भाजपा पे एंटी इन्कमवेंसी का कोई प्रभाव पड़ता नजर नहीं आ रहा है, जिसकी कुछ चुनावी विशेषज्ञों ने पहले आशंका जताई थी। वहीं अगर हिमाचल प्रदेश के परिणामों पे नज़र डालें तो वहां सत्ता परिवर्तन होता दिख रहा है, 5 साल पुरानी वीरभद्र सिंह जी की कॉंग्रेस सरकार जाती हुई नज़र आ रही है और भाजपा वहां भी सरकार बनाने की ओर अग्रसर है।

जहाँ तक बात गुजरात की करें तो गुजरात विधान सभा चुनावों को प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी और नए नवेले कॉंग्रेसी अध्यक्ष राहुल गांधी जी दोनों हीं के लिए प्रतिष्ठा का प्रश्न माना जा रहा था । अपने गृहक्षेत्र में हार मिलने पर विरोधियों को मोदी जी पे कटाक्ष करने का मौक़ा मिलता तो वहीं राहुल गाँधी जी का अध्यक्ष बनने के तुरंत बाद भी हार का सिलसिला ना तोड़ पाना विरोधियों को बोलने का मौक़ा देगा।

हार्दिक पटेल जैसे कुछ क्षेत्रीय नेताओं ने सौराष्ट में थोड़ा बहुत मुकाबला तो किया पर पूरे गुजरात को अगर देंखें तो उनका योगदान उतना असर नहीं डाल सका। पूर्व में हुए CD काण्ड से कहीं न कहीं हार्दिक पटेल की छवि शहरी क्षेत्रों में धूमिल हुई और उसका भी खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ा । 

भाजपा जहाँ 2012 में गुजरात विधान सभा चुनावों में 115 सीटों पर जीती थी वहीं कांग्ग्रेस 61 सीट हीं जीत पाई थी। वर्तमान विधान सभा के परिणाम भी करीब करीब 2012 के जैसे हीं नज़र आ रहे हैं। अहमदबाद गांधीनगर जैसे मुख्य शहरों में भाजपा कार्यकर्ताओं ने जश्न का आगाज कर दिया है। 

भाजपा की इस जीत को 2019 में होने वाले लोकसभा चुनावों के रिहल्सल की तरह भी देखा जा रहा है, इस जीत से भाजपा में एक जोश का संचार होगा और वो और ढृढ़ता से अपने विरोधियों से मुकाबला करने के लिए तैयार होंगे। 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा किये जा रहे सभी आर्थिक सुधारों को भी ये परिणाम समर्थन से देते नज़र आएँगे। चुनाव परिणाम में हार और जीत सरकार द्वारा किये जा रहे कार्यों को भी समर्थन और असमर्थन देता हैं।

Source =Indiatoday

अगर गुजरात में पिछले 22 सालों के भाजपा राज को देखें तो जीत के बावजूद सीटों की संख्या घटती गई है।  2002  में जो संख्या 127 तक पहुँच गई थी वो 2007 आते आते घाट के 117 हो गई और फॉर 2012 में ये संख्या घाट के 115 हो गई थी। अभी तक प्राप्त आंकड़ों के अनुसार इस बार भाजपा के सीटों की संख्या 110 के अंदर सिमटती हुई नजर आ रही है। 2019 की लोकसभा अगले साल होने वाली राजस्थान और मध्यप्रदेश के विधानसभाओं के मद्देनज़र इन घटती हुई सीटों पे भी भाजपा को ध्यान देना चाहिए । 

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