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कृषि वैज्ञानिक आजकल कृषकों की फसलों को बचाये रखन...
कृषि वैज्ञानिक आजकल कृषकों की फसलों को बचाये रखने के लिए एक नए तरह की टेकनीक पर काम कर रहे हैं। इस नए तकनीन में कुछ ऐसी व्यवस्था की जा रही है की जिसके अंतर्गत पौधा कीड़ों के अन्दर एक प्रकार का यौन आकांक्षा को बढ़ाएगा और ऐसा कर के वो कीड़े को मार डालेगा।
इसी सोच और तकनीक पर स्पेन के कुछ कृषि वैज्ञानिकों काम कर रहे हैं और उन्होंने अब ऐसी एक तकनीक ढूंढ निकाली है। इन वैज्ञानिकों ने यह साबित कर दिया है कि पौधों के अन्दर कुछ गेनेतिक चेंजेज कर देने से वो फेरोमोन्स नाम का केमिकल पैदा कर सकते हैं। विज्ञानिकों के इसी नयी तकनीक के माध्यम से 'सेक्सी पौधे' विकसित किये जाने की बात की जा रही है। वैसे पौधों के सुरक्षा के लिए इस फेरोमोन्स केमिकल का उपयोग पहले भी होता रहा है, परन्तु फिलहाल इसे तैयार करने में बहुत ज्यादा बजट बैठ जाता है ।
फेरोमोन्स केमिकल क्या हैं?
फेरोमोन्स नाम का यह केमिकल दरअसल वो पदार्थ होता है जिसे मादा कीड़े नर कीड़ों को मोहित करने के लिए बाहर निकालती हैं, और नर कीड़े इस रसायन से मोहित हो जाते हैं। वैज्ञानिकों की इस नयी खोज का लक्ष्य उन सभी पौधो को कीड़ों के आतंक से बचाना होगा जिन पौधों की कीमत मार्केट में ज्यादा होती हैं । इसी टेकनीक के माध्यम से अब 'सेक्सी पौधों' को विकसित करने की बात की जा रही है।
ससफायर परियोजना
वैज्ञानिकों द्वारा इस प्रकार से पौधों को विकसित करने के लिए एक परियोजना बनाया जाएगा और इस परियोजना का नाम रखा गया है 'ससफायर' परियोजना। इस परियोजना में पौधों को इस प्रकार से विकसित कराया जाएगा की जिस से वो खुद फेरोमोन्स केमिकल बना सकें। मिडिया एजेंसी बीबीसी की एक खबर के अनुसार, इस परियोजना के एक सदस्य विसेंट नवारो ने इस पर कहा है की, फसलों की सुरक्षा के लिए ये एक बहुत हीं कारगर उपाय हो सकता है। जब फेरोमोन्स केमिकल बहुत ज्यादा मात्रा में बन जाते हैं तो इसकी वजह से नर कीड़े बहुत परेशान से हो जाते हैं और वो उस वक़्त मादा कीड़ों को ढूंढ नहीं पाते है इसी कारण से कीड़ों के प्रजनन में भी कमी आ जाती है।
खर्चीला तकनीक
इस परियोजना पर काम कर रहे शोधकर्ता नवारो के अनुसार, यह टेकनीक वैसे तो पहले से हीं उपयोग में लायी जा रही है परन्तु इसमें बहुत ज्यादा खर्च आ जाता है। नवारों ने इसकी कीमत पर कहा कि कई बार देखा गया है की इसकी कीमत 23 हज़ार डॉलर से ले कर 35 हजार डॉलर तक और कभी कभी तो यह 117 हजार डॉलर प्रतिकिलो भी पहुंच जाती है। इसका अर्थ यह हुआ की इस तकनीक से फसलों की रक्षा करना बहुत खर्चिला होगा और इससे फ़सलों की लागत बहुत ज्यादा हो जाएगी।
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