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इन दिनों मध्य प्रदेश के इंदौर से लड़कियों में ड्रग एडिक्शन के कई मामले सामने आ रहे है। ये ड्रग एडिक्ट लड़कियां 20 से 25 साल की हाई क्लास सोसायटी से ताल्लुक रखने वाली कॉलेज गोइंग है या तो प्रोफेशनल्स हैं। कुछ युवा तो नशे के लिए कोबरा सांप के जहर का भी उपयोग कर रहे है।
वो लड़की, वैसे तो इंदौर में पढ़ने के लिए आई थी, कॉलेज में एडमिशन भी लिया। लेकिन उसे यहां दोस्तों के साथ पार्टी का चस्का लग गया। फिर धीरे-धीरे उसने सिगरेट और अल्कोहल पीना शुरू की लेकिन यह लत अब ड्रग्स तक पहुंच गयी है। इसका पता घर वालों को तब चला जब कॉलेज ने घर वालों को बताया कि उनकी लड़की कई दिनों से कॉलेज नहीं आई है। उसका हाल जानने के लिए घर वाले इंदौर पहुंचे, तो यहां नशे की लत का पता चला और उसे रिहेब सेंटर लेजाकर इलाज शुरू करवाया।
यह किस्सा है इंदौर शहर के रिहेबिलिटेशन सेंटर में अपने नशे की आदत का इलाज करवाने आई एक लड़की का।
डॉ. सुरेश अग्रवाल जो कि रिहेबिलिटेशन सेंटर चलाते है उन्होंने बताया की ये ड्रग एडिक्ट लड़कियां हाई क्लास सोसायटी से ताल्लुक रखने वाली 20 से 25 साल की कॉलेज गोइंग या यंग प्रोफेशनल्स हैं। उन्होंने बताया कि एक रिहेब सेंटर में आने वाले कुल मरीजों में कम से कम 5 से 6 फीसदी मरीज लड़कियां ही होती है।
नशे का यह सिलसिला केवल ड्रग्स तक ही सीमित नहीं है। लोग नशे के असर को बढ़ाने के लिए ज़हरीले पदार्थों का भी उपयोग करते हैं। यहाँ तक की नशे के लिए लोग कोबरा के ज़हर का भी सेवन करते है। कोबरा के जहर को प्रोसेस कर उसे इतना हल्का कर दिया जाता है कि सेवन करने पर उसकी मौत नहीं होती है।
ऐसा मामला शहर में भी सामने आ चुका है। डॉ. अग्रवाल के मुताबिक 25 साल के एक युवा को कोबरा का ज़हर लेने की लत थी। वह विदेश से मंगवाकर वो कोबरा वेनम कंज़्यूम करता था।
इस एडिक्शन को रोकने के लिए परिवार की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। नशे की लत का पता, नशा करने वाले व्यक्ति के परिवार को ही सबसे पहले चलेगा। रिहेब थैरेपी के बाद में वह व्यक्ति नशा शुरू ना करे इसकी निगरानी भी परिवार वाले ही कर सकते हैं।
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