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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने एक अहम् ...
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की कैबिनेट ने एक अहम् फैसला लेते हुए तीन तलाक के खिलाफ बनाये गए विधेयक ‘दी मुस्लिम वुमन (प्रोटेक्शन ऑफ़ राइट्स ऑन मैरिज) बिल 2017’ के मसौदे को संसद के वर्तमान में चल रहे शीतकालीन सत्र में ही पेश करने की मंजूरी दे दी है।
सरकार की कोशिश रहेगी कि यह विधयेक शीतकालीन सत्र में ही लोकसभा और राजयसभा से पारित करा लिया जाए और जल्द से जल्द इसे कानून की शक्ल दे दी जाए। संसदीय बुद्धिजीवियों के अनुसार संसद अगर चाहे तो इस विधेयक को बैक डेट से भी पारित करवा सकती है। ऐसा करने से उन महिलाओं को मदद मिलेगी जिन्हे पहले ही तीन तलाक के कारण समस्या झेलनी पड़ी है।
यह विधयेक मुख्यतः मुस्लिम महिलाओं की उस परेशानी को ध्यान में रखते हुए लाया जा रहा है जिसमे उन्हें हर वक़्त तलाक मिल जाने का डर सताता रहता है। मुस्लिम धर्म में तीन तलाक की इस प्रथा को ‘तलाक-ए-बिद्दत’ कहते हैं। इसके अंतर्गत मुस्लिम शौहर जब चाहे तब तीन बार तलाक कह कर अपनी पत्नी को तलाक दे सकता है और ऐसा करने के बाद तलाकशुदा महिला का वर्तमान में कानून भी मदद नहीं कर पाता।
भाजपा ने 2014 के आम चुनावों से पहले से ही नरेंद्र मोदी जी की अगुआई में इस मुद्दे का मुखर होकर विरोध किया था, और आज तीन साल बाद इस मसौदे की प्रगति देख कर लगता है कि वो मुखर विरोध सिर्फ चुनावी जुमला नहीं था बल्कि भजपा सच में मुस्लिम महिलाओं के दर्द का निदान ढूंढने की कोशिश में लगी थी।
मोदी सरकार द्वारा जारी विधेयक के मसौदे के अंतर्गत कहा गया है कि ट्रिपल तलाक गैरकानूनी है, अगर कोई ये देता है तो देने वाले शौहर को करीब तीन वर्ष कारावास की सजा हो सकती है। किसी भी स्थिति में दिया गया तीन तलाक... चाहे वो मौखिक हो या लिखित या फिर इलेक्ट्रॉनिक... वो गैरकानूनी हीं कहलायेगा। ट्रिपल तलाक से पीड़ित महिला अपने लिए और अपने नाबालिक बच्चों के लिए गुजाराभत्ता और मुआवज़ा मांग सकती है, गुजाराभत्ते और मुआवजे का निर्णय मजिस्ट्रेट द्वारा किया जायेगा।
संसद के दोनों सदनों में पारित होने के बाद इस विधेयक को राज्यों के पास उनका इसपे नजरिया जानने भेजा जायेगा।
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