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मोदी सरकार एक बहुत बड़ा फैसला लेने जा रही है। यह फैसला इतना बड़ा है कि हो सकता है इसे लेने के बाद बहुत से लोग मोदी और केंद्र सरकार के विरोधी हो जाये। लेकिन इसके बावजूद सिर्फ देश के हित के लिए मोदी ये बड़ा कदम उठा रहे है। आपको बता दे कि नरेंद्र मोदी ने 40000 मुसलमानो को देश से बाहर निकालने का फैसला ले लिया है। यह वो मुसलमान है जो कश्मीर और देश के दूसरे हिस्से में अवैध रूप से रहते है। म्यांमार के इन रोहिंग्या मुसलमानों की पहचान करके इन्हें देश से बाहर भेज दिया जायेगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इन रोहिंग्या मुसलमानों को गृह मंत्रालय फॉरनर्स एक्ट के तहत म्यांमार भेजा जायेगा। कुछ खबरों के मुताबित ये लोग भारत में समुद्र के रास्ते बांग्लादेश और म्यायांर की सीमा से घुसपैठ कर भारत में घुसे थे।
सोमवार के दिन गृह मंत्रालय में केंद्रीय गृह सचिव राजीव महर्षि की अध्यक्षता में बैठक हुई है, जहां इस विषय पर चर्चा हुई है। आंकड़ो के मुताबित भारत में सबसे ज्यादा रोंहिग्या मुसलमान लगभग 10 हजार के करीब जम्मू में बसे हैं। बांग्लादेश में रोहिंग्या शरणार्थी की संख्या फिलहाल तीन लाख है।
हालांकि संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार संगठन के आंकड़ों के अनुसार, भारत में 14,000 रोहिंग्या मुसलमान रह रहे हैं। इस विषय पर सरकार ने यह कहा कि वह संयुक्त राष्ट्र की ओर से इन्हें शरणार्थी कहे जाने की टर्म के साथ नहीं है। संयुक्त राष्ट्र इन लोगो को देश में घुसे अवैध लोगों के तौर पर ही देखता है।
इसलिए फॉरनर्स एक्ट के तहत सरकार इन रोहिंग्या मुसलमानो को ना केवल हिरासत में लेने बल्कि गिरफ्तार कर सजा देने और प्रत्यर्पण करने का भी अधिकार रखती है। आपको बता दे कि रोहिंग्या मुसलमानों का विवाद कोई नया नहीं है यह 100 साल पुराना है। दरअसल 1982 में म्यांमार सरकार ने एक राष्ट्रीयता कानून बनाया था जिसमें रोहिंग्या मुसलमानों का नागरिक दर्जा खत्म कर दिया गया था।
इस कानून के बनने के बाद से ही म्यांमार सरकार रोहिंग्या मुसलमानों को देश छोड़ने के लिए मजबूर करती रही है। भले ही यह विवाद बहुत पुराना हो, लेकिन वर्ष 2012 में कुछ सांप्रदायिक दंगों से इसे हवा मिली थी। उत्तरी राखिन में रोहिंग्या मुसलमानों और बौद्ध धर्म के लोगों के बीच हुए इस दंगे में 50 से ज्यादा मुस्लिम और करीब 30 बौद्ध लोग मारे गए थे।
1948 में म्यांमार के आजाद होने के बाद से रोहिंग्या मुसलमान और म्यांमार के बहुसंख्यक बौद्ध समुदाय के बीच यह विवाद चला आ रहा है। मुसलमान यहाँ 16वीं शताब्दी से ही रहते हैं। यह उस वक्त की बात है जब म्यांमार में ब्रिटिश शासन था और वर्ष 1826 में जब पहला एंग्लो-बर्मा युद्ध खत्म हुआ तो उसके बाद अराकान पर ब्रिटिश राज कायम हो गया। अपना राज होते ही ब्रिटश शासकों ने मजदूरों को बांग्लादेश से अराकान लाना शुरू किया। इस तरह म्यांमार के राखिन में पड़ोसी मुल्क बांग्लादेश से आने वालों की संख्या लगातार बढ़ती गई।
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