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एक लोकतान्त्रिक संगठन का 'पुश्तैनी'वारिस:गांधी

132 साल पुराना संगठन 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' ज

6 years ago
एक लोकतान्त्रिक संगठन का 'पुश्तैनी'वारिस:गांधी

132 साल पुराना संगठन 'भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस' जिसे हमारे पाठ्क्रम की किताबों में गर्व से आज़ादी के आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाने वाला बताया जाता है, आज उसका सुप्रीमों बदल रहा है। हालांकि बदलाव सिर्फ मुख्य नाम में हो रहा हैं, उप-नाम तो पिछले सुप्रीमो का भी वही था जो वर्तमान में होने जा रहे सुप्रीमो का है.. "गाँधी" ।

पिछले 40 सालों का कांग्रेसी इतिहास अगर खंघाला जाए तो आपको 33 साल सिर्फ और सिर्फ गाँधी नेहरू परिवार के लोग हीं अध्यक्ष पद पर आसीन मिलेंगे, बाकी बचे सात साल में आपको पीवी नरसिम्हा राव और सीताराम केसरी जी इसलिए दिख गए क्योंकि तब तक राजीव गाँधी जी के देहांत के बाद गाँधी परिवार से किसी ने राजनीति में आने का निर्णय किया हीं नहीं था। 

एक जमाने में ‘इंडिया इज इंदिरा और इंदिरा इज इंडिया’ के नारे बहुत लगाए जाते थे क्योंकि पूरे देश पर इंदिरा जी का एकाधिकार था या थोड़े सख़्त लहज़े में कहें तो तानाशाही थी जिसे आम लोग इमरजेंसी या आपात-काल के नाम से भी जानते हैं। ठीक जैसे कांग्रेस पार्टी में गांधी नेहरू परिवार की तानाशाही चलती है। 

कांग्रेस पार्टी में कितने हीं बड़े नेता क्यों ना हो, कितने हीं उम्दा वक्ता क्यों ना हों.. जब तक उन्हें एक गांधी परिवार के लिए निष्ठावान नहीं माना जाएगा तब तक उन्हें कोई तबज्जो नहीं मिल सकती, और अगर उनकी निष्ठा देख कर उन्हें कोई बड़ा ओहदा मिल भी जाता है तो भी उन्हें अपने काम की रिपोर्टिंग गाँधी परिवार को करनी हीं पड़ती हैं, ठीक जैसे कोई रिमोट कंट्रोल से चलने वाला रोबोट काम करता है। 

बहरहाल इतने ज्यादा परिवारवाद के बाद भी हंसी तब आती है जब कांग्रेस पार्टी के नेता भाजपा और नरेंद्र मोदी जी पर परिवारवाद और तानाशाह का आरोप लगाते हैं। एक पुरानी कहावत है “उल्टा चोर कोतबाल को डांटे” इस सन्दर्भ में जाने क्यों ये कहाबत सटीक बैठती है। 

प्रधानमन्त्री नरेंद्र मोदी जी, जिनके पिता अनाज पीसने की चक्की चलाने का काम करते थे, उनके भाई बहनों में सबसे बड़े 75 वर्षीय भाई बाडनगर के वृद्ध आश्रम में रहते हैं, एक दूसरे भाई निजी कम्पनी में 10000 की पगार पर फीटर का काम करते थे, जो अब रिटायर हो चुके हैं, बाकी परिवार भी कुछ ऐसी हीं आर्थिक स्थिति में जीवन व्यतीत कर रहा है। 

आपने ध्यान दिया होगा, मोदी जी के परिवार से कोई भी राजनीति में नहीं है, इससे पहले भाजपा से प्रधानमंत्री रहे अटल बिहारी बाजपाई जी के परिवार से भी कोई बड़ा नेता नहीं बन सका, क्योंकि इन दोनों नेताओं ने कहीं न कहीं खुद हीं परिवारवाद को बढ़ावा नहीं दिया, हालांकि उनके पास इतना पावर था। है कि वो अपने परिवार के किसी भी व्यक्ति को कोई भी पद दिला सकते थे। 

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