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घुटनों के मरीजों के लिए केंद्र सरकार ने बुधवार क
घुटनों के मरीजों के लिए केंद्र सरकार ने बुधवार को एक बड़ी सौगात दी है। केंद्र सरकार ने घोषणा की है कि विभिन्न श्रेणी के कृत्रिम घुटनों की कीमत में 59 से 69 फीसदी तक की कटौती की जाएगी। अब मरीज लाखों रुपये की जगह हजारों रुपये में घुटने की दर्द से निजात पा सकेंगे। यानी घुटनों के मरीजों को अब इसके उपचार के लिए लाखों रुपये खर्च नहीं करने होंगे। सरकार के इस फैसले की जानकारी केंद्रीय रसायन एवं उवर्रक मंत्री अनंत कुमार ने दी। उन्होंने बताया कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा लालकिले की प्राचीर से मंगलवार को सस्ती दवाओं की उपलब्धता की घोषणा के तुरंत बाद यह कदम उठाया गया है।
कृत्रिम घुटने को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने दवा की श्रेणी में रखा है। एनपीपीए ने दवा मूल्य नियंत्रण आदेश के अनुसार कृत्रिम घुटने की कीमतों को नियंत्रित करने का आदेश जारी किया है, जो तत्काल प्रभाव से लागू हो गया है।
आपको बता दे कि नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग ऑथोरिटी ने नी-रिप्लेसमेंट इंप्लांट की कीमतों में भारी कमी करते हुए उसकी राशि निर्धारित की। 54 हजार रुपये से 1.14 लाख रुपये के बीच घुटना प्रत्यारोपण इंप्लांट की मूल्य सीमा तय की गयी है। इससे पहले इप्लांट के लिए मरीजों को 1.58 लाख रूपये से 2.50 लाख रूपये देने पड़ते थे। सर्जरी की मौजूदा लागत में लगभग 70 प्रतिशत तक की कमी की गयी है। इस कदम के द्वारा इस तरह की सर्जरी कराने वाले रोगियों का सालाना करीब 1500 करोड़ रुपये बच सकता है।
विशेष इंप्लांट के मामले में कैंसर और ट्यूमर के लिए इसकी कीमत मौजूदा 4-9 लाख रुपये से काफी कम करके 1,13,950 रुपये की गयी है
इस महीने की शुरुआत में नेशनल फार्मास्युटिकल प्राइसिंग ऑथोरिटी ने कहा था कि ऑर्थोपेडिक नी इम्प्लांट पर औसत लाभ 313 प्रतिशत तक होने का पता चला है।
अनंत कुमार (2.4-8) ने कहा, 'हृदयरोगियों के लिए स्टेंट के दाम सीमित करने के उपरांत अब हमने सभी तरह के घुटना प्रतिरोपण की कीमत नियंत्रित करने का निर्णय किया है।
उन्होंने कहा कि यदि आयातक, अस्पताल और खुदरा विक्रेता एमआरपी से अधिक वसूलते हैं तो उनके विरुद्ध कार्रवाई की जायेगी। नई मूल्य प्रणाली के अनुसार सर्वाधिक उपयोग होने वाले कोबाल्ट-क्रोमियम इम्प्लांट का एमआरपी 54,720 रुपये निर्धारित किया गया है। साथ ही जीएसटी और जोड़ा जायेगा। इसमें पूर्ववर्ती 1,58,324 रुपये के औसत एमआरपी में 65 प्रतिशत तक की कमी की गयी है। इसकी कीमत पहले 1.58 लाख रुपये से ढाई लाख रुपये तक होती थी।
हर साल भारत में एक से डेढ़ लाख लोग घुटने की सर्जरी करवाते हैं।विश्व स्वास्थ्य संगठन यानि डब्ल्यूएचओ के मुताबिक 2020 तक ऑस्टियोआर्थ्राइटिस दुनिया भर की आबादी एक बड़े हिस्से के चलने-फिरने पर असर डालने वाला चौथा सबसे बड़ा कारण बनेगा।
80 से 90 फीसदी इंप्लांट का बाजार भारत में विदेशों से आयात पर ही निर्भर है। जिसके कारण भारत का उद्योग जगत बड़ी विदेशी कंपनियों के मुकाबले टिक नहीं पाता है। सरकार भी मानती है कि कीमतों पर सीलिंग लगाने से देशी बाजार में सुधार आएगा।
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