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सुप्रीम कोर्ट के द्वारा
सुप्रीम कोर्ट के द्वारा तीन तलाक पर आए ऐतिहासिक फैसले के उपरांत मुस्लिम महिलाओं को 1400 साल पुरानी पंरपरा के नाम पर हो रहे शोषण से आज़ादी मिली है। परन्तु इस्लाम में अभी भी कई ऐसी कुप्रथाएं हैं। जिनके कारण औरत को दर्द और तकलीफ का सामना करना पड़ता है। जिनमे से हलाला और महिलाओं के खतने जैसी कुप्रथाएं प्रमुख हैं।
मुस्लिम महिलाओं ने तीन तलाक पर आए फैसले के बाद अब ऐसी ही कुप्रथा को खत्म करने की गुजारिश करने की गुहार लगाते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखा है।
महिलाओं का खतना इस्लाम में एक ऐसी कुप्रथा है। जिससे न सिर्फ महिलाएं अपना मानसिक संतुलन खो देती हैं, बल्कि उनके शरीर को बहुत नुकसान भी पहुंचता है और जो लड़कियां इससे बच जाती हैं, उनके जहन में इस कुप्रथा से जुड़ी दर्दनाक यादें ताउम्र ही रहती है। कई समुदाय इस कुप्रथा को सदियों से करते आ रहे हैं। परन्तु इस कुप्रथा पर रोक लगाने के लिए कुछ महिलाओं ने मोर्चा खोल दिया है।
बोहरा समुदाय की मासूमा रानाल्वी ने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम एक खुला ख़त लिखकर इस कुप्रथा को रोकने की मांग की हैI
अपने खत में मासूमा रानाल्वी ने लिखा है कि स्वतंत्रता दिवस पर आपने मुस्लिम महिलाओं के दुखों और कष्टों पर बात की थीI आपने ट्रिपल तलाक को Anti-Women कहा था। यह सुनकर बहुत अच्छा लगा था। परन्तु तब तक हम औरतों को पूरी आजादी नहीं मिल सकती जब तक हमारा बलात्कार होता रहेगा, हमें परंपरा, संस्कृति और धर्म के नाम पर प्रताड़ित किया जाता रहेगा। सभी को समान अधिकार देने की बात हमारा संविधान करता है।
परन्तु सच तो यह है कि जब भी किसी बच्ची को गर्भ में मारा जाता है, जब भी किसी बच्ची की जबरन शादी करवा दी जाती है, जब भी किसी बहु को दहेज के नाम पर जलाया जाता है, जब भी किसी लड़की के साथ छेड़खानी होती है या फिर उसके साथ बलात्कार किया जाता है, हर बार इस समानता के अधिकार का हनन किया जाता है।
ट्रिपल तलाक अन्याय है, पर इस देश की मुस्लिम औरतों की केवल यही एक समस्या नहीं है। इसलिए मैं आपको Female Genital Mutilation (FGM) या खतना प्रथा के बारे में बताना चाहती हूं, इस खत के द्वारा मैं आपका ध्यान इस भयानक प्रथा की ओर खींचना चाहती हूं। सालों से बोहरा समुदाय में ‘खतना प्रथा’ या ‘खफ्ज प्रथा’ का पालन किया जा रहा है। शिया मुस्लिम हैं बोहरा। इसकी संख्या लगभग 2 मिलियन है और ज्यादातर ये लोग गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और राजस्थान में बसे हुए है। मैं बताना चाहती हूं कि मेरे समुदाय में आज भी छोटी बच्चियों के साथ क्या होता है।
बच्ची 7 साल की होने पर उसकी मां या दादी उसे एक दाई या लोकल डॉक्टर के पास ले जाती हैं। साथ ही बच्ची को नहीं बताया जाता कि उसे कहां ले जाया जा रहा है या उसके साथ क्या होने वाला हैI
दाई या डॉक्टर उसके Clitoris को काट देते हैं। इस प्रथा का दर्द उम्र भर के लिए उस बच्ची के साथ रह जाता है। इस प्रथा का एकमात्र उद्देश्य बच्ची या महिला के Sexual Desires (2.5-4) को दबाना होता है।
मासूमा ने बताया कि ‘फजम' महिलाओं और लड़कियों के मानवाधिकार का हनन है। यह महिलाओं के साथ होने वाले भेदभाव का सबसे बड़ा उदाहरण है। ये अक्सर बच्चों के साथ होता है और ये उनके अधिकारों का भी हनन है। इस प्रथा से व्यक्ति के मानसिक, शारीरिक स्वास्थ्य पर भी असर पड़ता है।
इस प्रथा का सैंकड़ों सालों से शांति पूर्वक पालन किया जा रहा है तथा इस प्रथा के बारे में बोहरा समुदाय के बाहर बहुत कम लोग ही जानते होंगे। बोहरा समुदाय की कुछ महिलाओं ने साल 2015 में एकजुट होकर ‘WeSpeakOut On FGM’ नाम से एक कैंपेन प्रारम्भ किया। जहाँ पर हमने आपस में अपनी दुख और कहानियां एक-दूसरे से कही। हमने खतना प्रथा के विरुद्ध एक जंग का ऐलान करने की ठानी है और इसमें हम आपकी मदद चाहते है।
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